बूँद -बूँद से भरता घड़ा
बूँद - बूँद से सागर ,
काले मेघा छा गए
बनकर धरती का घागर ।
आज़ाद होने की चाह में
छोड़ देती बादल का दामन ,
इसी को तो मनुष्य ने
नाम दिया है सावन ।
आकाश में नयन मटकाती फिरती
आँख मारती है यह नभ को ,
जैसे ही धरती पर गिरती ।
बूँद एक अवतार है
महिमा अपरम्पार है ,
जीवों को देती है यह जीवन ,
जीवन का श्रृंगार है।
बूँद - बूँद से सागर ,
काले मेघा छा गए
बनकर धरती का घागर ।
आज़ाद होने की चाह में
छोड़ देती बादल का दामन ,
इसी को तो मनुष्य ने
नाम दिया है सावन ।
आकाश में नयन मटकाती फिरती
आँख मारती है यह नभ को ,
जैसे ही धरती पर गिरती ।
बूँद एक अवतार है
महिमा अपरम्पार है ,
जीवों को देती है यह जीवन ,
जीवन का श्रृंगार है।
2 comments:
क्या अंदाज़ है बात कहने का
आपकी सोच मोलिक है, सुंदर कविता
badhiya prayas hai aapka bandhuwar...
dhero sadhuwad..
arsh
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