Sunday, August 23, 2009

मेरे विचरो की पोटली में से.......

हर किसी को एक सहारा चाहिए होता है जीवन में जो उन्हें हर आंधी से हर तूफ़ान से बचा सके और नही तो मानसिक रूप से ही शक्ति दे सके। ऐसा सहारा परिवार वाले, दोस्त, शुभ चिन्तक आदि बन सकते है। परन्तु कभी न कभी जीवन में ऐसा भी समय आता है जब हमें इनसे अधिक मज़बूत सहारे की आवश्यकता पड़ती है। और तब इंसान को किसी एक शक्ति की आस होती है। जिसकी पूर्ति "भगवान्" से होती है।
हर धर्म में हर ग्रन्थ में अलग-अलग नाम है, परन्तु इशारा एक ही ओर होता है। बहुत लोग ईश्वर में विश्वास करते है और बहुत नही। पर यह "भगवान्", "ईश्वर", "खुदा" है क्या? यह कोई व्यक्ति है, शक्ति है या मात्र अंध-विश्वास? इस विषय में कई धर्नाये, कई विश्वास है।


कुछ मेरे भी विचार है जो ज्यादातर आवाम से मेल नही खाते। "ईश्वर" वह शक्ति है जो हर वास्तु हर जीव में व्यापक है। वह एक भरोसा है। या फ़िर यूं कहे की वह एक बहाना है हौसला प्राप्त करने का, और संसार को सही रह पर चलने का। यह एक माध्यम है मनुष्य के अन्तर-मन व बाहिये-मन को दोषों से बचाने का। जिस तरह पशु को बांधकर, मार-फटकार कर काबू में रखा जाता है, उसी प्रकार मनुष्य को भी काबू में रखना अनिवार्य है। मनुष्य एक सामाजिक पशु है, जो समूह में ही रहता है, वह अकेले निवास नही कर सकता। और समूह व समाज में रहने के लिए आवश्यक है की मनुष्य समाज के प्रति द्वेष भाव न रखे और न ही कोई ऐसा कार्य करे जिससे समाज को किसी प्रकार की हानि हो। इस जीव को एक दायेरे में रखने के लिए किसी शक्ति या कहे बहाने की आवश्यकता है। इसी विचार व आवश्यकता से जन्म हुआ "ईश्वर" का, एक ऐसा शक्तिशाली बहाना है जो हर मनुष्य को व्यवस्थित रखने में समर्थ है।

जो महापुरुष अपना जीवन "ईश्वर" को खोजने व जानने के लिए समर्पित कर देते है, जो संसार के झमेले से ख़ुद को दूर कर लेते है, या तो उन्हें ईश्वार की परिभाषा समझ आ जाती है या फ़िर मेरे विचारों से अलग, उन्हें ईश्वर को पाने की राह मिल जाती है। और यदि मेरा दृष्टिकोण सही है तो वह इस बहाने की अहमियत को जान जाते है और अच्छे कार्य हेतु परमेश्वर का प्रचार करते है ताकि इस संसार में प्रेम, सद-भाव व सुख-शान्ति व्यापक रहे। सत्य कुछ भी हो, कोई भी कारण हो पर परिणाम अद्भुद है।

में किसी की धारणा का विरोध नही कर रहा और न ही अपने विचार किसी पर थोपना चाहता हूँ। केवल अपने विचार प्रकट कर रहा हूँ, जो की मुझे ग़लत नही लगता। नास्तिकता को बढावा देना मेरा उद्देश्य नही है।

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