Monday, December 8, 2008

पईसा


काहे तकता तू भइया पईसे की बाड है ,
पईसा वफादार न कल था न आज है।

मंत्री राजा तो गए देश से छूट
समय की महिमा है , गई किस्मत फूट
अब तो यहाँ नोटों का साम्राज्य है ।

काहे तकता तू भईया पईसे की बाड है ,
पईसा वफादार न कल था न आज है ।

धर्म गया भाड़ में कर्म गया भाड़ में
आज के युग में ,
पईसा ही काम काज है ।

जिसके पास नहीं है
वः कूड़ा है वः कोढ़ी है ,
बड़े रहिसों के पास मोटर और कोठी है ।
धिक्कारा जाता जो आज के समाज में ,
यारों वही तो इंसानियत का ताज है ।

काहे तकता तू भइया पईसे की बाड है ,
पईसा वफादार न कल था न आज है ।

इंसान से बेहतर तो कुत्ता मेरे भाई ,
कोई लालच नहीं सो जाए बिन चटाई
पईसा ... पईसा जिसे कुत्ता भी है नहीं सुन्गता
वही तो बना इंसान का अनाज है ।

कौन माता पिता
कहाँ है ईश्वर ,
यहाँ तो अब दौलत का ही राज है।

काहे तकता तू भइया पईसे की बाड है ,
पईसा वफादार न कल था न आज है ।

कोई किसी के यहाँ आता नहीं काम ,
बिन परिश्रम के खाएं सब आम
कितना बिगडैल हमारा यह समाज है
आखरी पंक्ति पर आया मैं पंहुचा ,
निश्चय करो इस पर विचारना आज है ।

काहे तकता तू भइया पईसे की बाड है ,
पईसा वफादार न कल था आज है।

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