Monday, December 8, 2008

मेरे भइया



उंगली पकड़ कर चलाया था
गम में गले लगाया था ,
याद आपको करता हूँ भइया
आपने ही सब सिखाया था ।
समझ न थी मुझे तिन्के की भी
आपने सब समझाया था ।
दुविधा ने जब घेरा मुझे
राह नज़र न आई थी ,
हाथ पकडा आपने
आपने ही दिया जलाया था ।

बालक हूँ एक छोटा सा मैं
मेरे शिक्षक आप हो ,
मेरा जग हैं मेरे भइया
इस जग के दाता आ हो ।
मिटटी का था ढेर मैं
कुछ नही मुझको आता था ,
घडा जिसने बनाया मुझे
वः प्यारे कुम्हार आप हो ।

अब सहारे से मैं आपके
दरिया भी पार कर जाता हूँ ,
तरक्की और खुशी का मिले तोहफा
बस और मैं क्या चाहता हूँ ।
जल्द ही मिलना होगा आपसे
आशा का दीप जलाता हूँ ,
और एक कविता अपने कलम से
अर्पित आपको कर जाता हूँ ।

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