Monday, December 8, 2008

रात्रि




तारे टिम - टिमा रहे हैं
चांदनी छा गई ,
घोर सन्नाटे में ,
निंदिया आ गई ।
सन्नाटे को तोडा सर्द पवन ने ,
भूमि - आकाश का लगाव देखो ,
सोती धरती को ढक लिया गगन ने ।

चाँद बोला तारों से ,
"सुस्त न बनो चमको और ।"
बोल पड़ा बादल ,
"फुर्सत मिले तो इधर करो गौर ,
विचित्र है मनुष्य उजाले में ,
बनावट की तारीफ किए गए
अन्धकार के आते ही ,
सुन्दरता भूल चले गए ।
नहीं सोचा था ,
यह दिन भी आयेगा
सुन्दरता को हमारी,
कभी भुला दिया जाएगा ।"
तारे तो हो गए दंग
दुखी था चाँद
उन्ही के संग ।
सुनकर चाँदनी भी रो पड़ी ,
धरती पर सर्द ओस गिर पड़ी ।
रात ने भी न कुछ कहा ,
थी पड़ी जैसे टूटी छड़ी ।

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