Monday, December 8, 2008

बर्सात



बर्सात का मौसम आया है
खुशियाँ संग अपने लाया है
मोती - सी बूंदे गिरती छम - छम ,
जैसे कोई गीत गया है ।
छा जाते काले मेघ ये
धुल जाते सारे पेड़ ये ,
सबका चाहिता है ये मौसम
मानो इन्द्र का है खेल ये ।
पंछी भी गाते राग हैं
बुझती सब मन की आग है
कितना सुरीला है ये मौसम ,
सुबह भी लागे सांझ है ।

भाई बादल तू कहाँ से आता है
संग अपने बहारें लाता है
बरसो से प्यासी थी धरती ये ,
तू इसकी प्यास भुझाता है ।
तुझे न ज्ञात तू कहाँ जाएगा
पर जब प्यासी होगी ये धरती ,
तू अगले बरस लौट आयेगा ।

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