Monday, December 8, 2008

प्राचीन कला - मनुष्य सम्बन्ध


धरती घूमती थी
परन्तु अब घुमाई जा रही है ।
जो माँ कभी लोरिया सुनती थी
गर्दन वही काटी जा रही है ।
यह निर्मल वायु कभी थकान दूर करती थी
अब मृत्यु का कारण बनाई जा रही है ।
मखमली मिटटी , जिसमे सनकर बच्चे बड़े होते ,
वही अज कदमो से कुचली जा रही है ।
विद्या जो कभी धर्म थी ,
वही तो खरीदी और बेचीं जा रही है ।

सूर्य समेट लेगा अपना तेज,
कर देगा सर्वनाश
अन्धकार को भेज ।
जिसे चंदा मामा कहता था बालक
उसे देख खौंफ से झुलस उठेगा ।
जिस रात्रि के घूँघट तले हर मन पिघलता था
उसी के तले अब मन घुट मरेगा ।
जननी होगी मनुष्य को कला प्राचीन,
तभी सूरज दानवीर बनेगा ,
चाँद मुस्कुराएगा
रात का घूँघट फ़िर से सजेगा ।
तभी मनुष्य ,
'मनुष्य' कहलाने युग्य बनेगा ।

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