Monday, December 8, 2008

बूँद


बूँद -बूँद से भरता घड़ा
बूँद - बूँद से सागर ,
काले मेघा छा गए
बनकर धरती का घागर ।

आज़ाद होने की चाह में
छोड़ देती बादल का दामन ,
इसी को तो मनुष्य ने
नाम दिया है सावन ।
आकाश में नयन मटकाती फिरती
आँख मारती है यह नभ को ,
जैसे ही धरती पर गिरती ।

बूँद एक अवतार है
महिमा अपरम्पार है ,
जीवों को देती है यह जीवन ,
जीवन का श्रृंगार है।

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

क्या अंदाज़ है बात कहने का
आपकी सोच मोलिक है, सुंदर कविता

"अर्श" said...

badhiya prayas hai aapka bandhuwar...
dhero sadhuwad..



arsh